Tuesday, February 22, 2011

श्रद्धा सुमन

भट्टाचार्य जी नहीं रहे। वे कुछ समय अस्पताल में थे। मुझे नहीं मालूम कि उन्हें क्या कष्ट था। बहुत बुरा लग रहा है कि इस बीच उनसे बिलकुल संपर्क नहीं हो पाया। उनसे मेरा परिचय मेरी पत्नी के जरिये हुआ था। भट्टाचार्य परिवार मेरे ससुराल पक्ष का पारिवारिक मित्र है। भट्टाचार्य जी कि पत्नी शिखा दीदी एक संगीत बिरादरी की सदस्य हैं। मेरी पत्नी भी इसकी सदस्य है। भट्टाचार्य परिवार ने एक धार्मिक गुरु से दीक्षा ली है। मेरी पत्नी ने भी उन्ही गुरु से दीक्षा ली है। भट्टाचार्य दम्पति के दो बच्चे हैं। बेटी स्निग्धा की शादी साल भर पहले हुई। हम लोग उसमे गए थे। भट्टाचार्य जी से यह आखिरी मुलाकात थी। वे एक बहुत अच्छे चित्रकार थे। उनके घर मैंने एक लड़की की तस्वीर दीवार पर टंगी देखी थी। बहुत सुंदर थी। पता चला कि भट्टाचार्य जी ने बनायीं थी। उनका बेटा शांतनु बहुत उत्साही है। अक्सर संगीत के आयोजनों में मिल जाता है। बहुत सम्मान से पेश आता है। घर आने को भी कहता है। पिछली एक मुलाकात में उसने कहा था- आप लोग तो भूल ही गए। मम्मी याद करती है। अपनी शादी के बाद मेरी पत्नी मुझे जिन जिन लोगों से मिलवाने ले गयी, भट्टाचार्य परिवार उनमे प्रमुख था। हम लोगों ने उनके घर बहुत जायकेदार चीजें खायी हैं। एक बार भट्टाचार्य जी के जन्मदिन पर भी गए थे। वे बहुत प्यार से मिलते थे। शांतनु ने पिछली मुलाकात में गंभीरता से घर बुलाया था। मैंने पत्नी से इसका जिक्र भी किया था। तब शायद शिखा दीदी क़ी तबीयत कुछ नासाज़ थी। हम लोग नहीं जा सके।
मैं अपनी कृतघ्नता के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ। ईश्वर भट्टाचार्य जी को स्वर्ग में स्थान दे। और उनके परिवार को इस परिस्थिति का सामना करने क़ी शक्ति दे।