Wednesday, March 30, 2011

किस बात का जश्न

३० जनवरी 2011
रात साढ़े बारह बजे के बाद का समय
-----------------------------


आधा घंटे पहले भारत ने विश्वकप के सेमीफाइनल में पाकिस्तान को हराया है। शहर में पटाखे फूट रहे हैं। हमने टीवी पर देखा, दीवाली जैसा माहौल है। दफ्तर के बाहर जीई रोड पर तेज रफ्तार मोटरसाइकिलें जा रही हैं। एक एक बाइक पर तीन तीन चार चार नौजवान सवार हैं। उनके हाथों में तिरंगा है और वे भारत माता की जय के नारे लगा रहे हैं।
दफ्तर के कई सहयोगी शहर का माहौल देखने निकल पड़े हैं। लौटकर बताते हैं कि जयस्तंभ चौक तक पहुंचने का रास्ता नहीं है। रास्ते में इतनी भीड़ है। बीयर की बोतलें खुल रही हैं।
मैंने चौथे माले से नीचे उतरकर सडक़ का माहौल देखा। मेरे एक वरिष्ठ सहयोगी का कहना था कि इस खुशी में उत्तेजना अधिक है। इसे देखकर डर लगता है। मैंने देखा पास के चौराहे पर कुछ नौजवान पुलिसवालों से उलझ रहे हैं।


००००००


मैंने याद किया कि होली पर भी ऐसा ही माहौल था। मैं हर बार ऐन होली पर मोटरसाइकिल से अपने घर जाता हूं जो 77 किलोमीटर दूर धमतरी में है। डर लगता रहता है कि पता नहीं कब कौन कहां रोक लेगा। गांवों में कहीं कहीं पर कुछ लोग रस्से लेकर राह रोकते हैं और चंदा मांगते हैं। कुछ त्योहार की तरंग में भी रहते हैं। अपने शहर में भी त्योहार पर नौजवान मोटरसाइकिलों पर सवार होकर, शोर मचाते हुए इधर से उधर जाते दिखते हैं। शहर के वे इलाके पहचाने हुए हैं जहां नौजवानों के समूह आने जाने वाले निरीह लोगों को कालिख या गोबर से सराबोर करने के लिए तैयार बैठे रहते हैं।

कितना अच्छा होता अगर मैं धमतरी जाता तो इस उम्मीद के साथ जाता कि रास्ते भर फाग गाने वाले लोग मिलेंगे। गांव गांव में पंडाल लगाकर कुछ लोग बैठे होंगे जो आने जाने वालों का गुलाल लगाकर स्वागत करेंगे और मुंह मीठा कराएंगे।

मुझे अफसोस है कि मुझे खुद फाग गाना और नगाड़ा बजाना नहीं आता। मेरी ऐसी मित्रमंडली भी नहीं है जिसके साथ मैं इस तरह की होली मना सकूं। हालांकि मुझे मोहल्ले भर के बुजुर्गों से मिलने से किसी ने रोका नहीं है, मैं इतना भी नहीं करता। कुछ देर बच्चों की निगरानी करता हूं, दिन में खा-पीकर आराम करता हूं और शाम से यह चर्चा शुरू हो जाती है कि सुबह कितने बजे निकलूंगा।


00000000000


प्रेस में आज काम पता नहीं कब हुआ। अभी वह हो ही रहा है। भारत की जीत के बाद शहर के माहौल की खबर बन रही है। मुझसे किसी ने नहीं कहा कि तुम भी जाओ, माहौल देखो और कुछ लिखो।

0000000000

मैं सोच रहा हूं कि यह जश्न किस बात का है। यह सिर्फ क्रिकेट नहीं है।
यह नई पीढ़ी का संदेश है कि वह साफ सुथरी स्पर्धा में यकीन रखती है।
यह देश की पराजित जनता का विजय घोष है जो वह भ्रष्ट नेताओं, अफसरों और दूसरे लोगों को सुनाना चाहती है।