Saturday, October 15, 2011

गुणवंत व्यास नहीं रहे

रायपुर कभी व्यासजी के बगैर भी रह जायेगा, इस बारे में कभी सोचा नहीं था। गुणवंत व्यास नहीं हुए होते तो कोई फर्क नहीं पड़ता। लेकिन रायपुर में गुणवंत व्यास हुए, हजारों विद्यार्थियों के आदरणीय गुरु रहे। संगीत समारोहों को गरिमा प्रदान करते रहे। अपने व्यवहार से नयी पीढ़ी को संस्कार देते रहे। मुझसे हमेशा स्नेह से मिले। और उसके बाद नहीं रहे। इसलिए उनके जाने की खबर पढ़कर अच्छा नहीं लग रहा है। उनकी कमी को शहर के संगीतप्रेमी बहुत समय तक महसूस करेंगे।

छोटा सा कद, कुरता पायजामा, संगीत का ज्ञान, मुंह में पान और मिसरी जैसी मीठी जुबान। ये उनका संक्षिप्त परिचय था। वे मेरे घर जा चुके थे। ये उन्होंने खुद बताया था। वे मेरे पिता को जानते थे। उन्होंने छत्तीसगढ़ी गीतों की धुनें बनायीं, उनकी किताब प्रकाशित की और उसमें पापाजी की भी रचनाएँ शामिल कीं। रचनाएँ उपलब्ध कराने के लिए उन्होंने मेरी मदद ली। उनसे मेरी थोड़ी सी मुलाकातें हुईं। लेकिन बात ऐसे अपनेपन से करते थे मानो सगे रिश्तेदार हैं या मेरे अध्यापक रहे हैं। मुझे अच्छा लग रहा है कि आखिरी मुलाकात में मैंने उन्हें प्लेट में उनके पसंद की चीज़ें ला कर दी थीं। ये मुलाकात भट्टाचार्यजी की बिटिया की शादी में हुयी थी। टेबल पर गुरूजी यानि मोहन भाई भी मौजूद थे। एक बार गुरूजी को लेकर भी व्यासजी के घर गया था।
मेरी पत्नी को उन्होंने पढाया होगा। या उसी कालेज का शिक्षक होने के कारण वे उसे जानते थे। बाद में मेरे जरिये एक और रिश्ता बन गया। वे हर मुलाकात में पूछते थे कि उसे लेकर क्यों नहीं आये। जैसा कि बुजुर्ग लोग अक्सर पूछते ही हैं।
व्यास जी के पैर छूना अच्छा लगता था। वे इसके पात्र थे।

उनके बारे में कुछ और बातें अगली पोस्ट में।