Friday, December 18, 2009

डायरी का एक पन्ना-१

डायरी का एक पन्ना-1
आज शनिवार है, संभवत: 20 दिसंबर 2009। कल दिन भर बारिश हुई। मौसम एकदम ठंडा हो गया। आज सुबह घना कोहरा छाया हुआ था। घर से डेढ़ सौ मीटर दूर रिंग रोड नजर नहीं आ रहा था। रिंग रोड पर गाडिय़ां हेड लाइट्स ऑन करके चल रही थीं। पहले पहल इधर आए थे तो सुबह कैमरा लेकर निकलता था। उन दिनों ढेरों तस्वीरें खींची। ज्यादातर काम चलाऊ तस्वीरें थीं जिन्हें कोई भी खींच सकता है। कुछ इतनी खराब तस्वीरें थीं जिन्हें दिखाकर फोटोग्राफी के विद्यार्थियों को समझाया जा सकता है कि ऐसी तस्वीरें नहींं खींचनी चाहिए। आज मैंने एक भी तस्वीर नहीं खींची। मौसम को निहारता रहा।
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रिंग रोड फोर लेन हो रहा है। बहुत समय से काम चल रहा है। जब यह बनकर तैयार हो जाएगा तो आने जाने में कुछ सुविधा हो जाएगी लेकिन अभी तो बहुत असुविधा हो रही है। दो जगह ओवर ब्रिज बन रहे हैं, बहुत लंबे समय से। पता नहीं काम करने का सिस्टम क्या है। मीडिया में इस पर खबरें आती हैं लेकिन लेट होने की वजह और उस वजह को दूर करने के उपाय पर इन खबरों में अच्छी तरह चर्चा नहीं होती। रिपोर्टरों के पास इतना समय नहीं होता। उन्हें एक दिन में कई कई रिपोट्र्स बनानी पड़ती हैं।
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घर लौटते वक्त देखा, एक बच्ची को स्कूल छोडऩे जा रही एक महिला कीचड़ में फंस गई। पानी की पाइप बिछाने के लिए इन दिनों पूरी कॉलोनी में खुदाई चल रही है। सड़कें खोदने के बाद उन्हें पाटने और पहले की तरह बना देने का कोई सिस्टम ही नजर नहीं आता। यही गड्ढे बारिश में कीचड़ से भर जाते हैं जिनमें लोग फंसते हैं। सारे शहर में जगह जगह इस तरह के गड्ढे मिल जाएंगे जो सड़कें खोदने से बने हैं। लोग शादी ब्याह पर सड़कें घेर कर शामियाना लगाते हैं और इसके लिए सड़कों पर बड़ी कीलें गाड़ी जाती हैं। इनसे जो गड्ढा होता है उसे भरना कोई अपनी जिम्मेदारी नहीं समझता। स्वागत द्वार लगाने के लिए भी गड्ढे खोदे जाते हैं। इन्हें भी कोई नहीं भरता। नल के कनेक्शन लेने के लिए शायद बार बार सड़कें खोदी जाएंगी।
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आज एक साप्ताहिक अखबार के लिए नगर निगम चुनाव पर कवर स्टोरी लिखनी है। कुछ प्रत्याशियों के इंटरव्यू भी लेने हैं। वे अखबार को विज्ञापन देंगे। मैंने हाल ही में अपनी पत्रिका निकालने के लिए टाइटिल रजिस्ट्रेशन की पहल की है। इस काम में साप्ताहिक अखबार के प्रबंधक ने मेरी मदद की है। बदले में मुझे उनके अखबार के कुछ अंक निकालने पड़ेंगे। देअर आर नो फ्री लंचेज।
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एक राजनीतिक दल के लिए चुनाव का विज्ञापन बनाना है। यहां क्रिएटिविटी के लिए जगह नहीं है। कुछ प्रभावशाली लोग इस होड़ में लगे रहते हैं कि विज्ञापन जारी करने का अधिकार किसे मिले। इसमें उनका क्या फायदा है मुझे नहीं मालूम। यही बादशाह अकबर लोग अपने नौरत्नों से विज्ञापन बनवाते हैं और उनमें सुधार भी करवाते हैं। इन विज्ञापनों का एक जरूरी हिस्सा होता है पार्टी के नेताओं की तस्वीरें। फिर पार्टी के झंडे का रंग और चुनाव चिन्ह। पार्टी स्तर पर जारी होने वाले राजनीतिक विज्ञापनों में इसीलिए अभी तक कोई कल्पनाशीलता नहीं दिखती, कोई कलात्मक प्रभाव नहीं दिखता। प्रत्याशी अपने स्तर पर जो विज्ञापन बनवाते हैं उनमें से कई अधिक प्रभावी होते हैं। जैसे अखबारों के अग्रलेख से बेहतर अक्सर संपादक के नाम पत्र होते हैं। यहां मैं अच्छा लिखने वाले संपादकों की बात नहीं कर रहा। और न उन नियमित पत्र लेखकों की जो नाम छपाने के लिए पत्र लिखते हैं।
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घर में खाने का तेल खत्म हो गया। पैसे भी खत्म हो गए। शाम तक देखता हूं क्या हो पाता है।

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