Friday, May 28, 2010

कुछ करना पड़ेगा

मैं इन दिनों शाम के एक अखबार में काम कर रहा हूं। राज्य के एक नामी प्रकाशक का अखबार है। किसी जमाने में ठीक ठाक निकलता था। फिर बीच में उसने अपनी चमक खो दी। अखबार के पूर्व संपादक अब उसकी चमक लौटाने का प्रयास कर रहे हैं। मैं इसमें सहभागी हूं।
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अखबार में मैं कोई खास योगदान नहीं कर रहा हूं। अखबार का मतलब होता है ताजी खबरें। संपादक महोदय मौलिक समाचारों से अखबार निकालना चाहते हैं। इस लिहाज से तो मेरा योगदान लगभग जीरो है।
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मैं दूसरों की कॉपियों का संपादन भर कर रहा हूं। यह अलग बात है कि मेरे इस संपादन की कीमत ऊंची है। ऐसा संपादन हर कोई नहीं कर सकता। जो लोग कर सकते हैं वे इतने कम रेट पर उपलब्ध नहीं हैं।
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मेरे काम में अभी जर्नलिजम कम, साहित्य ज्यादा है। वह भी धीरे धीरे खत्म हो रहा है क्योंकि मैं पढ़ता नहीं हूं। लोगों से बहुत ज्यादा मिलता जुलता भी तो नहीं हंू। खासतौर पर ज्ञान और भाषा के धनी लोगों से।
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अब मेरे पास समय भी कम बचा है। और दुनिया की अपेक्षाओं का दबाव बढ़ता जा रहा है। कुछ दिनों बाद मैं बाजार से गायब हो जाऊंगा। लोग तर्क लगाएंगे कि अब तक कुछ नहीं कर पाया तो आगे क्या करेगा। मुझ पर कौन दांव लगाएगा।
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मैं अपने भविष्य को लेकर हताश हूं। लेकिन अपने आसपास बहुत से नाकाबिल लोगों को काम करते देखता हूं तो लगता है मुझे क्यों हताश होना चाहिए। पर यह भी है कि कंपीटीशन करने के लिए अगर यही लोग रह गए हैं तो इसका मतलब है मैं नीचे की ओर जा रहा हंू।
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दूसरे कमजोर लोगों को देखकर खुश हो लेना मेरे लिए नुकसानदेह है। ऐसे कमजोर लोग काम करते करते मजबूत हो जाते हैं और उन्हें कमजोर समझने वाला मैं अपनी जगह या उससे भी पीछे चला जाता हूं। ऐसा बहुत बार हुआ है। मैंने बहुत से लोगों को सिर्फ मेहनत और लगन के बल पर आगे बढ़ते देखा है।
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मुझे कुछ अरसा प्रेस में काम करने के साथ अपने नाम से मैगजीन का टाइटिल रजिस्टर करवा लेना चाहिए। और कुछ अनुभव इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का ले लेना चाहिए। ग्रैजुएशन करना चाहिए और फिर मीडिया की डिग्रियां लेनी चाहिए। और कुछ नहीं तो मीडिया का टीचर बनकर प्राइवेट ट्यूशन जैसा काम कर सकता हूं।
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अपना बिजनेस रहेगा तो अपनी प्लानिंग से काम करूंगा। अपने लिए काम करूंगा तो ज्यादा काम करूंगा। मेरे दिमाग में बहुत सी योजनाएं हैं, उन पर काम करूंगा। फोटोग्राफी, उपन्यास, फिल्में, वृत्तचित्र और एक अच्छी मैगजीन-ऐसी कुछ योजनाएं हैं।
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नई पीढ़ी के काम आना होगा। वरना बुढ़ापे में कौन पूछेगा।
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28 मई, 2010

2 Comments:

At May 28, 2010 at 4:30 AM , Blogger माधव( Madhav) said...

sure

 
At May 28, 2010 at 6:14 AM , Blogger Unknown said...

गद्दारों का पर्दाफास करो अपने आप सब ठीक हो जाएगा

 

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