एक ब्लॉग की एक पोस्ट पर एक टिप्पणी
अनिल पुसदकर जी के ब्लॉग पर एक तस्वीर देखी। लोककलाओं के प्रशिक्षण की एक कार्यशाला का शायद उद्घाटन होने वाला था। खाली स्टेज पर एक कुत्ता आ खड़ा हुआ। फोटोग्राफर ने क्लिक कर लिया। इस पर 29 कमेंट आए। ज्यादातर की मूल भावना थी हा हा हा। मुझे दुख हुआ कि वफादारी के प्रतीक इस जानवर की इतनी दुर्गति हो गयी कि इसे मंच पर देखकर लोगों को हंसी आ रही है। मैंने इस उम्मीद के साथ अपनी प्रतिक्रिया लिखी है कि इसे पर्सनली नहीं लिया जाएगा। यह वस्तुस्थिति पर एक कमेंट है। इसमें कुछ मेरी व्यक्तिगत पीड़ा भी निहित है। सुधी पाठक समझ सकते हैं।
00000000
दुष्यंत कुमार ने ये शेर पता नहीं क्या सोचकर लिखा था। लेकिन कुत्ते को स्टेज पर देखकर मुझे यह शेर बरबस याद आ गया-
हर तरफ ऐतराज होता है
मैं अगर रौशनी में आता हूं
ये एक वफादार जानवर है। लेकिन शहरी इंसानों की इस दुनिया में वफा की कदर कहां है?
वह गली का कुत्ता है। किसी रईस का कुत्ता होता तो सज संवर कर स्टेज पर आता। उसे देखकर लोग तालियां बजाते। उसकी तस्वीरें अखबारों में छपतीं।
गली के कुत्ते खतरनाक होते हैं। वे अपनी मरजी से भौंकते हैं और किसी के कहने से चुप नहीं होते। उन्हें पत्थर मारकर भगाना पड़ता है। या खुद चुपचाप उनके इलाके से निकल जाना पड़ता है। आपकी दुत्कार सहकर और खुले आसमान के नीचे सोकर जिंदगी गुजारने वालों से आप हुकम बजाने की अपेक्षा नहीं कर सकते। रईस लोग ऐसे कुत्तों को पसंद नहीं करते।
यह धुर नक्सल इलाकों की तस्वीर लगती है। स्टेज पर जिन्हें होना था वे नहीं हैं। जिसकी अपेक्षा नहीं की जाती वह है। उसके पास माइक नहीं है।
शहरों का प्रशासन अक्सर कुत्तों को जहर देने या उनकी नसबंदी करने की योजनाएं बनाता है। दूसरी ओर कुछ ऐसे भी लोग हैं जो गली के कुत्तों के लिए आश्रम चलाते हैं। मुंबई के किसी महापौर ने कभी कहा था कि हर नागरिक गली के एक एक कुत्ते को पाल ले तो इस समस्या का हल हो जाए।
कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि गली के कुत्तों को पुलिस के काम के लिए ट्रेन किया जाना चाहिए। ये कुत्ते विषम परिस्थितियों में रहने के आदी होते हैं। इनकी अधिक देखरेख की जरूरत नहीं पड़ती।
लेकिन सरकार आमतौर पर महंगे कुत्ते खरीदती है जिनके खाने पीने और दूसरी सुविधाओं के लिए खूब पैसे खर्च करने का प्रावधान होता है। अब कुत्ता तो बताएगा नहीं कि उसे खाने में अमुक चीज दी जा रही है या नहीं। एक साहब ने कुत्तों को ट्रेनिंग के लिए अमरीका भेजने का सुझाव दिया था।
छत्तीसगढ़ में कुछ समय पहले नागा बटालियन तैनात थी। उसके बारे में मशहूर था कि उसके जवान कुत्ते खाते हैं। वे जिधर से गुजरते हैं वह इलाका कुत्तों से खाली हो जाता है। मुझे एक पुराना लेख याद आता है जिसमें कहा गया था कि जहां फौजें तैनात होती हैं वहां आम आदमी के मानवाधिकार खत्म हो जाते हैं। बंदूक की नोक पर वह सब कुछ होता है जो हो सकता है।
मुझे यह तस्वीर और उस पर लोगों का नजरिया देखकर लग रहा है मानो शहरी रंगकर्मियों के मंच पर कोई लोकनाट्य कर्मी चढ़ गया हो।
या मंत्रालय की रिपोर्टिंग करने वालों के बीच कोई प्रूफ रीडर आ गया हो।
6 Comments:
पुराना लेख याद आता है जिसमें कहा गया था कि जहां फौजें तैनात होती हैं वहां आम आदमी के मानवाधिकार खत्म हो जाते हैं। बंदूक की नोक पर वह सब कुछ होता है जो हो सकता है।
@ लेकिन इस तैनाती का जिम्मेदार कौन ?
वही जो आम लोगों के लिए लड़ने का दम भरते है लेकिन अपनी बन्दुक के जोर पर आम जन का शोषण करते है | यदि ये ना हो तो फ़ौज तैनाती की जरुरत ही ना पड़े |
nice
वाह भाई, आपको हिन्दी ब्लागजगत में देखकर अच्छा लगा.
...प्रसंशनीय पोस्ट !!
विचारणीय पोस्ट
गली के कुत्ते पर लिखी यह पोस्ट सराहनीय है। नागा बटालियन के लोग श्वान-भक्छी होते हैं, मेरे लिये अभिनव जानकारी है।
Post a Comment
Subscribe to Post Comments [Atom]
<< Home