गजल
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इतने बरस रहा यहां जड़ें
नहीं जमा सका
मैं शहर की जमीन से रिश्ता नहीं बना सका
मिट्टी अलग थी गांव की, मौसम भी कुछ जुदा ही
था
जो आबो हवा खो गई वो मैं यहाँ न पा सका
किसम किसम की खुशबुएं पुकारती रहीं मुझे
मैं बैठकर सुकून से दो रोटियां न खा सका
रूठे हैं वो कि मैंने
उन्हें याद क्यूं नहीं किया
वो जिनको एक पल को मैं दिल से नहीं भुला
सका
- निकष परमार
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