Thursday, August 9, 2012

मां
------------------

जब भी याद किया पास आकर खड़ी हो गयी मां
जिसको भी देखा इज्जत से, वही हो गयी मां
. 
दिन भर से आंखें सूनी थीं, बुझा हुआ था मन
मुझको घर आते  देखा तो अच्छी हो गयी मां

नाजुक हाथों ने जब कसकर पकड़े मेरे हाथ
पा लेने  की जिद करती सी  बच्ची हो गयी मां

आंखों में है वही इबारत लेकिन धुंधली सी
कागज पर स्याही से लिक्खी चिट्ठी हो गयी मां

आंखों में सपने हैं लेकिन थके हुए हैं  पांव
टूटे फूटे पंखों वाली तितली हो गयी मां
भीड़ बहुत है लेकिन आँखें अपनों को ढूंढें 
मेले में खोयी छोटी सी बच्ची हो गयी मां

- निकष परमार

0 Comments:

Post a Comment

Subscribe to Post Comments [Atom]

<< Home