बहन का फोन
आज बड़ी बहन का फोन आया। उसने बताया कि शिक्षिका के रूप में नौकरी करते उसे 25 साल हो गए। आज 30 नवंबर के दिन उसने पापाजी के साथ जाकर एक गांव में जॉइन किया था।
धमतरी से 10-20 किलोमीटर दूर एक गांव था। वह वहां किराए का एक कमरा लेकर रहती थी। छुट्टी के दिन वह घर आ जाती थी। उसे लाने ले जाने के लिए हमारे घर पेट्रोल वाली पहली दुपहिया खरीदी गई। यह टीवीएस फिफ्टी थी जिसे ज्यादातर मैं ही चलाता था। मैंने याद किया कि मैं उसे छोडऩे जाता था। उसने कहा कि उसे सब याद है। उसकी इस लंबी यात्रा में सबका योगदान रहा है।
उसने कहा- पापाजी होते तो सबसे पहले उन्हें बताती।
मेरा कद इतना बड़ा नहीं है कि बड़ी बहन मुझे अपनी नौकरी के 25 साल पूरे होने की खबर सुनाए। और यह भी कहे कि पापाजी होते तो उन्हें बताती। मैं घर का बड़ा लडक़ा हूं। एक बड़े लडक़े की जिम्मेदारियां मैं निभा नहीं पाया। उल्टे घर वालों की चिंता का विषय बना रहा। यह बहन की उदारता है कि वह ऐसा कह रही है। उसके पास विकल्प भी तो नहीं है।
(30 नवंबर को लिखा गया)
6 Comments:
कोई अफ़सोस नहीं
बीत गई रात का
मुझको विश्वास बहुत
इस नये प्रभात का.
भाई, आपके पिता जी नें कभी ये पंक्तियॉं लिखी थी. आपकी डायरी को पढ़ते हुए मुझे अनायास ये याद आ गई.
sanjeev jee,
aapki baton me apnatva bhara hai. bahut achchha laga.
रिश्तों की बुनियाद.
apka swagat hai sir. mera blog dhanya hua.
This comment has been removed by the author.
This comment has been removed by the author.
Post a Comment
Subscribe to Post Comments [Atom]
<< Home