Tuesday, May 31, 2011

मन की शांति यहां भी नहीं है।

३१ मई 2011, मंगलवार

आज दोपहर संपादकीय विभाग में अकेले बैठा था। किसी दूसरे विभाग के कुछ लोग पीछे की टेबल में आकर बैठ गए और कुछ चर्चा करने लगे। एक ने फोन पर किसी को धमकाना शुरू किया। पंद्रह हजार पहले के और पंद्रह हजार अभी के होते हैं। तुम्हारे भाई ने पैसे या गाड़ी देने के लिए कहा था। उसने नहीं दिए तो सोच लेना। पिछली बार जमीन पर लोट लोट कर रोया था। इस बार सोच लेना क्या हो सकता है । कल सुबह तेरे घर पुलिस लेकर आऊंगा। तेरे गांव तक जाऊंगा। पंचायत बुलवाऊंगा। तेरे पापा को बुलवाऊंगा। सोच ले कैसा लगेगा।


यह मैं किन लोगों के बीच आ गया हूं। मैं नहीं जानता कि मामला क्या है। लेकिन जितना सुना वह ठीक नहीं है। इनका प्रतिकार होना चाहिए। यह शायद यहां का वसूली विभाग है। एक टेलीफोन कंपनी के इसी विभाग की बदतमीजी मैं लंबे समय तक भुगत चुका हूं। इन लोगों को सवा सेर मिलना चाहिए।

आज ही युवक कांग्रेसी विनोद तिवारी की प्रेस कांफ्रेंस थी। वे लोग गरियाबंद के नक्सली हादसे की जगह तक बाइक से गए थे। उसका कहना है कि वहां सडक़, बिजली, पानी, स्कूल, अस्पताल की सुविधा नहीं है। लोग नक्सली नहीं बनेंगे तो क्या बनेंगे।

शहर में बिजली, पानी, सडक़, अस्पताल सब है। लेकिन मन की शांति यहां भी नहीं है।