Tuesday, January 18, 2011

तुम भी साथ होते तो कितना अच्छा होता

कोई तो करेगा मुझको भी याद
और मुस्कुरा देगा।

किसी को तो याद आएंगे
मेरे साथ बिताये हुए पल

कोई तो यह सोचकर
कृतज्ञता से भर जायेगा
कि हर ज़रूरत के समय मैं
उसके साथ खड़ा रहा


कोई तो करेगा अफ़सोस
मुझ पर अविश्वास करने के लिए
और कहेगा
कि आदमी सोचता तो बहुत है
पर सब कुछ कर कहाँ पाता है

(पिता जी की पहली बरसी पर लिखा गया)

Wednesday, January 12, 2011

बहन का फोन

आज बड़ी बहन का फोन आया। उसने बताया कि शिक्षिका के रूप में नौकरी करते उसे 25 साल हो गए। आज 30 नवंबर के दिन उसने पापाजी के साथ जाकर एक गांव में जॉइन किया था।
धमतरी से 10-20 किलोमीटर दूर एक गांव था। वह वहां किराए का एक कमरा लेकर रहती थी। छुट्टी के दिन वह घर आ जाती थी। उसे लाने ले जाने के लिए हमारे घर पेट्रोल वाली पहली दुपहिया खरीदी गई। यह टीवीएस फिफ्टी थी जिसे ज्यादातर मैं ही चलाता था। मैंने याद किया कि मैं उसे छोडऩे जाता था। उसने कहा कि उसे सब याद है। उसकी इस लंबी यात्रा में सबका योगदान रहा है।
उसने कहा- पापाजी होते तो सबसे पहले उन्हें बताती।
मेरा कद इतना बड़ा नहीं है कि बड़ी बहन मुझे अपनी नौकरी के 25 साल पूरे होने की खबर सुनाए। और यह भी कहे कि पापाजी होते तो उन्हें बताती। मैं घर का बड़ा लडक़ा हूं। एक बड़े लडक़े की जिम्मेदारियां मैं निभा नहीं पाया। उल्टे घर वालों की चिंता का विषय बना रहा। यह बहन की उदारता है कि वह ऐसा कह रही है। उसके पास विकल्प भी तो नहीं है।

(30 नवंबर को लिखा गया)

Monday, January 10, 2011

मां

५ जनवरी के आसपास का कोई दिन

मां कल या परसों चली जाएगी। आज उसने कहा- कल मुझे बस में बिठा देना।
मैं चाहता हूं वह बहुत दिनों तक यहां रहे। यह भी तो उसका घर है।
लेकिन वह लौटना चाहती है। वहां, जहां उसके जीवन के चालीस बरस बीते हैं। वहीं उसने हम सबको पाल पोसकर बड़ा किया। वहीं रहकर घर चलाने के लिए नौकरी की है। एक गृहस्थी की जिम्मेदारियां निभाई हैं। उसकी मेजबानी के लिए मेहमान आज तक उसे याद करते हैं। उस घर और मोहल्ले से उसका गहरा रिश्ता है। शहर के लोग भी जाने पहचाने हैं। भला चाहने वाले लोग भी हैं और समय पर मदद करने वाले भी। वह किसी की मामी है, किसी की भाभी। उसे नानी और दादी कहने वाले ढेरों बच्चे हैं। कामवाली है, सब्जीवाली है। और कुछ न हो तो वह वहां की दीवारों से बात कर सकती है। या फिर उस गाय से जो रोज दरवाजे पर आकर खड़ी हो जाती है।
यहां आकर मां अकेली हो जाती है। कहीं आने जाने के लिए उसे मुझसे कहना पड़ता है। मेरे पास समय की कमी है।
सबसे बड़ी कमी पैसों की है। मेरी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है यह मां को पता है। इस बार उसने इसे करीब से देखा है। मेरी हैसियत उसके अनुमान से कहीं अधिक छोटी है।
मां की जरूरतें बहुत ज्यादा नहीं हैं। लेकिन मेरे घर आकर उसे मन को मारना पड़ता है।
मैं मां को दुनिया का हर सुख लाकर देना चाहता हूं। लेकिन समय और पैसे का अभाव मुझे छोटा बना देता है। मां बचती है कि मुझे मेरे छोटेपन का अहसास न हो। लेकिन कई बार इस कड़वी सच्चाई से मुंह छिपाना कठिन हो जाता है। इससे मैं कभी दुखी और कभी नाराज हो जाता हूं। मेरी इस असहिष्णुता से मां डरती है। बल्कि लगातार डरती रहती है।
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मां अब रिटायर हो चुकी है। अब उसकी अपेक्षा आराम करने की है। यह उसका अधिकार भी है।

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10 जनवरी
मां को घर छोड़ आया हूं। वह अकेले यात्रा करने से डरती है।
इस बार वह मेरे घर सबसे ज्यादा दिनों तक रही। इस बार उसने मेरी गृहस्थी की उठापटक को अपनी नजरों के सामने देखा। बहुत कुछ तो वह पहले देख चुकी थी। इस बार बहुत कुछ और देख लिया।
उसे मेरे स्थायित्व की बहुत चिंता है। बल्कि हम सभी भाई बहनों के जीवन की उसे चिंता है। वह बहुत से मामलों में कुछ बोलती नहीं। लेकिन ऐसा नहीं कि वह सोचती भी नहीं। वह लगातार सोचती है। और जहां बोलना जरूरी लगता है, बोलती भी है। उसे लगता है कि बहुत से मौकों पर चुप रहना ही उसके लिए उचित है। सो वह चुप रहती है।
इस बार मैंने मां से खूब सारी बातें कीं। मैं ईश्वर से उसके लिए सुख मांगता हूं।
ईश्वर होता है या नहीं, मैं नहीं जानता।
मैं उम्मीद करता हूं कि ईश्वर होता है और वह मां को सुखी करने में मेरी मदद करेगा।

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